बुलबुल और अमरूद का पेड़ – सबक सीखने की अनोखी दोस्ती

यह best hindi story hindi एक भूखी बुलबुल और अमरूद के पेड़ की दोस्ती की है। बुलबुल पहले फल बर्बाद करती थी, लेकिन पेड़ की सलाह से सिर्फ पके फल खाने लगी।

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यह best hindi story hindi एक भूखी बुलबुल और अमरूद के पेड़ की दोस्ती की है। बुलबुल पहले फल बर्बाद करती थी, लेकिन पेड़ की सलाह से सिर्फ पके फल खाने लगी। एक लड़के की बर्बादी देखकर सब सोच में पड़ गए, लेकिन बुलबुल ने पक्षियों को सिखाया और सालों बाद वही लड़का बदल गया। यह motivational story बताती है कि छोटे बदलाव बड़े फर्क लाते हैं।

बच्चों, आज मैं आपको एक ऐसी पुरानी लेकिन हमेशा ताज़ा रहने वाली best hindi story hindi सुनाने जा रहा हूँ, जो सदियों पहले की है। यह motivational story है, जो हमें सिखाती है कि छोटी-छोटी बातों से भी बड़ा सबक सीखा जा सकता है। तो चलो, शुरू करते हैं!

कई-कई साल पहले की बात है, जब जंगल में हरियाली चारों तरफ फैली हुई थी। एक छोटी-सी प्यारी बुलबुल उड़ते-उड़ते भूख से व्याकुल हो गई। वह इधर-उधर भोजन की तलाश में घूम रही थी। अचानक उसकी नज़र एक हरे-भरे अमरूद के पेड़ पर पड़ी, जो फलों से लदा हुआ था। बुलबुल खुशी से चहकते हुए उस पर जा बैठी और अपनी नुकीली चोंच से अमरूदों को कुतरने लगी।

"अरे वाह! कितने रसीले अमरूद हैं!" बुलबुल ने मन ही मन सोचा और एक के बाद एक चोंच मारने लगी। लेकिन अफसोस, वह जितने अमरूद खाती, उससे कहीं ज्यादा चोंच मार-मारकर ज़मीन पर गिरा देती। कच्चे, अधपके – सब बेकार हो जाते। पेड़ से टूटकर गिरे अमरूद चारों तरफ बिखर गए।

अमरूद का पेड़ यह सब देखकर दुखी हो गया। उसकी पत्तियाँ जैसे सिसक रही थीं। आखिरकार, वह बर्दाश्त नहीं कर सका और बुलबुल से बोला, "ऐ बुलबुल बहन! यह क्या कर रही हो? तूने जितने अमरूद खाए, उससे दोगुने तो ज़मीन पर फेंक दिए। अब तुझ में और उस तोते में क्या फर्क रह गया? वह भी तो यही करता है – खाता कम, बर्बाद ज्यादा!"

बुलबुल यह सुनकर तमतमा गई। वह अपनी डाल पर फड़फड़ाते हुए बोली, "अरे पेड़ भैया! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे तोते से 비교 करने की? मैं कोई साधारण पक्षी थोड़े हूं! मैं तो मीठी-मीठी तान सुनाती हूं, गीत गाकर सबको खुश करती हूं। तोता बस कर्कश आवाज़ निकालता है!"

पेड़ ने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, ठीक है, गुस्सा मत हो। तेरी बात में दम है। तू फल खाती है तो साथ में अपनी मधुर आवाज़ से हमें सुकून भी देती है। लेकिन सोच, अगर तू सिर्फ पके हुए अमरूद ही चुनकर खाए, तो तुझे भी आसानी होगी और मुझे भी दर्द कम। आखिर पके फल तो एक-न-एक दिन झड़ ही जाते हैं ना?"

बुलबुल ने सिर झुकाकर सोचा। "ह्म्म... पेड़ भैया की बात तो सोलह आने सच्ची है।" फिर वह हंसते हुए बोली, "ठीक है, वादा रहा! अब से सिर्फ पके अमरूद ही खाऊंगी। ना कच्चे कुतरूंगी, ना बेकार गिराऊंगी।"

और सच में, उस दिन के बाद बुलबुल बदल गई। वह सुबह-सुबह आती, पके अमरूद चुनती, पेट भरती और फिर अपनी मधुर तान से पूरे जंगल को जगाती। "कू-कू... कू-कू..." उसकी आवाज़ सुनकर पास का अनार का पेड़ भी खुश हो जाता। दोनों पेड़ अब अच्छे दोस्त बन गए थे।

एक सुबह, ठंडी हवा में झूमते हुए अमरूद का पेड़ अनार वाले से बतिया रहा था। "देखो यार अनार भाई, बुलबुल अब कितनी समझदार हो गई है। पहले तो मेरे फल बर्बाद करती थी, अब सिर्फ पके चुनती है। इससे मुझे भी फायदा – नए फल जल्दी लगते हैं!"

अनार का पेड़ हंसकर बोला, "वाह! तेरी दोस्ती ने तो कमाल कर दिया। बुलबुल जैसी शरारती पक्षी भी सीख गई। लेकिन..." तभी दोनों की बातचीत में खलल पड़ा।

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देखते ही देखते एक शरारती लड़का जंगल में घुस आया। उसके हाथ में लंबी छड़ी थी। "आज अमरूद खाने का मूड है!" वह चिल्लाया और छड़ी से पेड़ पर ज़ोर-ज़ोर से वार करने लगा। धड़ाधड़! कच्चे, अधपके, पके – सब अमरूद ज़मीन पर बिखर गए। लड़के ने सिर्फ कुछ अच्छे वाले चुने, बाकी वहीं छोड़कर भाग गया।

अमरूद का पेड़ दर्द से कराह उठा। उसकी डालियाँ जैसे रो रही थीं। अनार का पेड़ दुखी स्वर में बोला, "मित्र, तेरी बात तो बुलबुल को समझ आ गई, लेकिन इन इंसानों को कब आएगी? वे तो बिना सोचे-समझे सब बर्बाद कर देते हैं। कच्चे फल भी नहीं छोड़ते!"

आसपास के दूसरे पेड़ – नीम, आम, जामुन – सब सुन रहे थे। एक छोटा-सा गौरैया भी डाल पर बैठी सोच में पड़ गई। "सच में, हम पक्षी तो सीख जाते हैं, लेकिन मनुष्य..."

तभी बुलबुल उड़ती हुई आई। उसने सब देख लिया। वह अमरूद के पेड़ पर बैठी और धीरे से बोली, "पेड़ भैया, दुखी मत हो। मैं जानती हूं, इंसान जल्दी नहीं सीखते, लेकिन हम तो अपना काम करते रहें। मैं अब और पक्षियों को बताऊंगी – सिर्फ पके फल खाओ, बर्बादी मत करो। शायद एक दिन कोई बच्चा सुन ले और बड़ा होकर दूसरों को सिखाए।"

अमरूद का पेड़ मुस्कुराया। "हां बहन, तू सही कहती है। छोटी-छोटी कोशिशें ही बड़ा बदलाव लाती हैं।"

फिर क्या, जंगल में एक नई शुरुआत हुई। बुलबुल ने अपने दोस्तों – गौरैया, मैना, कबूतर – सबको इकट्ठा किया। "दोस्तों, सुनो! फल खाओ, लेकिन बर्बाद मत करो। पेड़ हमारे दोस्त हैं, वे हमें छांव देते हैं, फल देते हैं। बदले में हम उन्हें दर्द क्यों दें?" सबने वादा किया। धीरे-धीरे जंगल हरा-भरा रहने लगा। पेड़ खुश, पक्षी खुश – सब खुश!

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। कई साल बाद, वही शरारती लड़का बड़ा हुआ। एक दिन वह जंगल लौटा। अब वह डॉक्टर बन चुका था। पेड़ों को देखकर उसे पुरानी याद आई। "ओह! मैंने कितनी बर्बादी की थी।" उसने पछतावा किया। फिर उसने गांव वालों को इकट्ठा कर सिखाया, "पेड़ लगाओ, फल पकने दो, बेकार मत काटो।" गांव में पेड़ों की रक्षा होने लगी। बुलबुल की छोटी सी कोशिश ने बड़ा असर दिखाया!

सीख: बच्चों, जीवन में बर्बादी मत करो – चाहे फल हो या समय। दूसरों की बात सुनो, समझो और बदलो। प्रकृति हमारी दोस्त है, उसकी रक्षा करो तो वह तुम्हें हमेशा देगी। छोटी कोशिशें ही दुनिया बदलती हैं!

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